मेरा नाम आशीष है. मैं दिल्ली का रहने वाला हूँ. मेरी उम्र 28 साल है और अच्छी सेहत के साथ-साथ 6 इंच लम्बे और 2 इंच मोटे लंड का मालिक हूँ। यह मेरी सच्ची कहानी है जो 2 साल पहले एक भाभी के साथ घटित हुई थी। उस भाभी का नाम रेशमा था. Desi sex कहानी शुरू करने से पहले मैं भाभी से आपको परिचित करवा देता हूँ.
उम्र की बात करें तो रेशमा 30 साल की थी. भरा हुआ बदन, गोरा रंग, बड़े-बड़े मम्मे, उभरी हुई गांड, फ़िगर 36-30-38 से कम नहीं था।
रेशमा मेरे सामने वाले घर में रहती थी और रोज अपने घर की बालकनी में गांड हिला-हिला के झाड़ू लगाया करती थी.
जब वो झाड़ू लगाती थी तो उसकी गांड ऐसे हिलती थी जैसे आम के पेड़ पर हवा लगने पर पके हुए आम हिलते हैं.
मन करता था उसकी गांड का रस पी लूं.
उसकी गांड को देख कर मेरा लंड खड़ा हो जाता था. बहुत दिनों तक मैंने उसको देखा फिर जब रहा न गया तो एक दिन उसके नाम की मुट्ठ मारनी ही पड़ी.
वो गांड हिलाती रहती थी और मैं उसको देख कर लंड हिलाता रहता था.
मगर शांत होने की बजाय लंड की प्यास बढ़ती जा रही थी.
रेशमा का पति किसी प्राइवेट कम्पनी में काम करता था।
उसका घर कुछ ऐसे बना हुआ था कि रेशमा का रूम मेरे रूम से साफ़ नज़र आता था।
एक दिन रेशमा के रूम का दरवाज़ा खुला था. मेरी नज़र पड़ी तो मैं अपने रूम की खिड़की से छुपकर देखने लगा।
रेशमा अपने कपड़े उतार रही थी. पहले उसने साड़ी खोली. साड़ी खोलते ही उसके बड़े-बड़े चूचे जो उसके ब्लाउज में भरे हुए थे वो मुझे दिखाई देने लगे.
ओए होए… क्या मस्त बोबे थे उसके. ब्लाउज मुश्किल से ही संभाल पा रहा था.
फिर उसके बाद उसने अपने पैटीकोट का नाड़ा खोल दिया और इतने में ही मेरा लंड खड़ा होकर मेरे अंडरवियर के साथ लड़ाई करने लगा.
जब उसने पैटीकोट उतारा तो उसकी गोरी मांसल जांघें देख कर मेरे मुंह में पानी आ गया.
5 मिनट बाद वो पूरी की पूरी केवल ब्रा और पैंटी में ही रह गई थी. क्या माल लग रही थी!
मैं सारा नज़ारा साफ़ साफ़ देख रहा था। उसने पहले तो अपनी योनि को पेंटी के ऊपर से खुजलाया.
उसकी इस हरकत ने मेरा हाथ मेरे तने हुए लंड पर पहुंचा दिया और मैंने अपने लंड को सहला दिया. स्स्स … क्या नजारा था यार … काश मैं उसकी पेंटी को खुजला पाता.
लेकिन कल्पना तो कल्पना ही होती है. फिर आगे जो हुआ उसकी तो मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी.
अगले ही पल रेशमा ने फिर पेंटी भी उतार दी.
बालों से लदी हुई रेशमा की योनि देखकर मेरा लंड अंडरवियर को फाड़कर बाहर आने के लिए मेरी जांघों को पीटने लगा.
कभी नीचे लगता तो कभी साइड में जाकर उछल जाता।
फिर उसने अपनी योनि पर ढेर सारी क्रीम लगाई और बेड पर लेट गई।
योनि के काले घने बालों पर क्रीम लगाए हुए रेशमा बेड पर मेरे सामने लेटी हुई थी.
मेरी तो हालत ऐसी थी कि जाकर उसकी योनि को अभी चोद दूं और उसकी योनि को अपने लंड से फाड़ दूं.
मगर ऐसा हो पाना अभी तो संभव नहीं था न, मैं बस दूर से ही देख कर उसकी योनि को चोदने की कल्पना करने के सिवाय और कुछ नहीं कर सकता था.
सामने का नजारा देख कर ऐसा हाल हो गया था कि अगर मैं लंड को केवल पैंट के ऊपर से ही सहलाने भी लगता तो दो मिनट में ही मेरा वीर्य छूट जाता.
दस मिनट बाद रेशमा क्रीम साफ़ करने लगी. देखते ही देखते क्रीम के साथ योनि के सारे बाल गायब हो गये.
उसने कपड़े से पौंछते हुए जब कपड़ा योनि से हटाया तो योनि एकदम चिकनी सफाचट हो गई थी.
क्या योनि थी यार … गोरी-गोरी, फूली हुई, हल्के गुलाबी रंग की … देखते ही चाटने का मन करने लगा।
यह सब देखकर अब मुझसे रहा न गया और मैंने वहीं पर खड़े होकर अपने लंड को हिलाना शुरू कर दिया.
मगर किस्मत खराब थी कि रेशमा बेड से उठने लगी और उसने मुझे अपना लंड हिलाते हुए देख लिया.
मेरा हाथ में मेरा लंड था और रेशमा की आंखों में गुस्सा. उसने उठ कर अपने रूम का दरवाजा गुस्से में पटकते हुए बंद कर लिया.
उसका ऐसा रिएक्शन देख कर मेरी गांड फट गई. मैं सोच रहा था कि कहीं यह अपने पति को सब कुछ बता न दे.
कई दिन तक तो मैं बालकनी में आया ही नहीं. मगर जैसा मैं सोच रहा था वैसा कुछ भी नहीं हुआ.
एक हफ्ता ऐसे ही निकल गया.
फिर जब सब कुछ सामान्य हो गया तो मैं फिर से उसके दर्शन करने अपनी बालकनी में आकर उसके रूम में झांकने लगा.
मैंने देखा कि उसके रूम में सजावट हो रखी थी. रेशमा तैयार हो रही थी.
शाम को सात बजे रेशमा बालकनी में आई.
मैं उसे देखकर अंदर रूम में हो गया.
मगर खिड़की खुली हुई थी तो मैं खिड़की में खड़ा होकर स्थिति का जायजा लेने लगा.
न चाहते हुए भी मेरी नजर रेशमा से मिल गई.
मैंने नर्वस सा मुंह बना कर उसको ऊपरी मन से स्माइल किया लेकिन उसने मेरी तरफ देख कर ऐसे रिएक्ट किया कि जैसे वो अभी भी गुस्से में ही है और फिर वापस अंदर चली गई.
कुछ मिनट बाद ही सब कुछ पलट गया. रेशमा दोबारा से अपनी बालकनी में आई.
मैं भी बाहर ही खड़ा था.
मैंने उसकी तरफ देखा और उसने मेरी तरफ देखा.
थोड़ी देर पहले जिस चेहरे पर गुस्सा था अब उस पर एक स्माइल थी.
इससे पहले मैं कुछ समझ पाता उसने मुझे अपने घर आने का इशारा किया.
पहले तो मैं समझा नहीं और भोंदुओं की तरह उसके चेहरे को देखता रहा.
उसके बाद उसने फिर आंखों ही आंखों में मुझे उसके घर आने का इशारा किया तब कहीं जाकर मेरी समझ में आया कि वह मुझे अपने घर बुला रही है.
मगर यह सब हुआ कैसे? मैं एक पल के लिए तो सोच में पड़ गया लेकिन फिर अगले ही पल सोचा कि बड़ी मुश्किल से मछली फंसी है.
अगर अबकी बार हाथ से फिसल गई तो शायद दोबारा ही हाथ लगे.
उसके बाद तो मेरे पांव में जैसे पहिये लग गये. जल्दी से तैयार होने के लिए यहाँ-वहाँ डोलने लगा.
अगले पांच या सात मिनट के अंदर मैं रेशमा के घर के बाहर खड़ा था.
उसने दरवाजा खोला तो मेरी नजर सीधी उसके चूचों की दरार पर जाकर ही अटक गई.
रेशमा ने झेंपते हुए कहा- पहले अंदर तो आ जाओ.
शायद रेशमा मेरी नजर को पढ़ गई थी.
उसने अंदर बुलाकर मुझे सोफे पर बिठाया.
मैंने देखा कि टेबल पर एक केक का बॉक्स पड़ा हुआ है.
बात शुरू करने के लिए मैंने पूछ लिया- ये केक किसके लिए है?
रेशमा मुस्कुराते हुए बोली- आज मेरा जन्मदिन है.
मगर अगले ही पल उसका चेहरा ऐसे उतर गया जैसे बाढ़ आई नदी से पानी उतर जाता है.
यहाँ तक कि उसने रोना ही शुरू कर दिया.
मैं उसकी इस बात पर हैरान हो रहा था कि आज तो खुशी का दिन है और ये रो रही है.
मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कर पूछा- क्या बात हुई? तुम रो क्यूं रही हो? मैंने कुछ गलत पूछ लिया क्या?
रेशमा ने ना में गर्दन हिला दी और सुबकते हुए बोली- देखो न, आज मेरा जन्मदिन है. लेकिन मेरे पति को मेरी परवाह ही नहीं है.
मैंने उसके कंधे को सहलाते हुए कहा- कोई बात नहीं. अगर वो नहीं हैं तो क्या हुआ. मैं तो हूं न.
मेरे हाथ उसकी कमर को सहलाने लगे. उसने मेरे कंधे पर अपना सिर रख लिया और पूछने लगी- उस दिन तुमने अपनी कैपरी में हाथ क्यों डाला हुआ था? हाथ क्यों हिला रहे थे तुम पैंट में डाल कर.
उसकी बात पर एक बार तो मेरी बोलती बंद हो गई कि अचानक बर्थडे की बात से एकदम ये लंड पर कैसे उतर आई?
मगर मैंने भी हिम्मत करते हुए कह ही दिया- उस दिन जो नजारा दिखाई दे रहा था उसके मजे लूट रहा था.
क्या पता फिर वो नजारा शायद दोबारा न मिले.
वो बोली- अगर दोबारा वही नजारा सामने हो तो क्या करोगे?
मैंने कहा- अबकी बार तो काट कर खा ही जाऊंगा.
कहकर मैंने उसके मुंह को ऊपर उठाया और उसके होंठों को चूसने लगा.
मेरा लंड तो पहले से ही तनना शुरू हो गया था इसलिए अंदर की हवस ने ज्यादा कुछ सोचने का मौका नहीं दिया.
मैं बस अवसर का लाभ उठाना चाह रहा था.
मेरे होंठों से अपने होंठों को दूर हटाने की एक बार तो उसने कोशिश की मगर मैं भी ऐसे हार नहीं मानने वाला था.
मैंने उसको पकड़े रखा और उसको चूसता रहा. कुछ ही देर में वो मेरे रंग में रंगने लगी.
वो मेरे होंठों को चूसने में मेरा साथ देने लगी.
मेरे हाथ उसकी कमर को सहलाने लगे. फिर मैंने उसके चूचों को दबाना शुरू कर दिया.
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